राजधानी दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के तत्कालीन आधिकारिक आवास से जले नोट बरामद किये जाने के मामले की जांच कर रही सुप्रीम कोर्ट की समिति ने अपनी रिपोर्ट में उनकी साजिश की ‘थ्योरी’ को खारिज करते हुए पूछा कि उन्होंने (न्यायमूर्ति वर्मा ने) पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई।
न्यायमूर्ति वर्मा के अनुसार, जिस भंडार कक्ष में यह बरामदगी हुई थी, उसका इस्तेमाल अप्रयुक्त फर्नीचर, बोतलें, कालीन और लोक निर्माण विभाग की सामग्री सहित विविध वस्तुओं को रखने के लिए किया जाता था और संपत्ति के सामने तथा पीछे दोनों प्रवेश द्वारों से पहुंचा जा सकता था, जिससे बाहरी लोगों के लिए वहां पहुंचना आसान हो जाता था।
पंजाब एवं हरियाणा उच्च के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का भंडार कक्ष पर ‘‘गुप्त या सक्रिय नियंत्रण’’ था। समिति की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यह साबित करता है कि उनका कदाचार इतना गंभीर था कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।
समिति ने कहा, “न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के अस्वाभाविक आचरण पर पहले ही गौर किया जा चुका है…और तथ्य यह है कि अगर कोई साजिश की बात थी तो उन्होंने पुलिस अधिकारियों के पास कोई शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या भारत के प्रधान न्यायाधीश के संज्ञान में क्यों नहीं लाया कि उनके घर के भंडार कक्ष में करेंसी नोटों के जलने के बारे में ‘प्लांटेड खबर’ बनाई गई थीं।