नई दिल्ली:बिहार विधानसभा चुनाव से पहले वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के विरोध में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान याचिकाकर्ताओं और चुनाव आयोग का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने फिलहाल SIR पर रोक लगाने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले पर 28 जुलाई को सुनवाई करेगा। कोर्ट ने कहा कि आधर कार्ड, राशन कार्ड को भी पहचान का सबूत मानें।
बिहार मतदाता सूची पुनरीक्षण मामले पर कोर्ट ने कहा कि इस न्यायालय के समक्ष दायर इन याचिकाओं में एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठाया गया है जो हमारे देश जैसे गणतंत्र की कार्यप्रणाली के मूल में जाता है। प्रश्न है मतदान के अधिकार का। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 24 जून 2025 के आदेश में भारत निर्वाचन आयोग द्वारा की गई प्रक्रिया, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 21 की उपधारा 3 के अंतर्गत मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण है, न केवल संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और अनुच्छेद 324, 325 और 326 के तहत मतदाताओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 के प्रावधानों और इसके लिए बनाए गए नियमों, विशेष रूप से मतदाताओं के पंजीकरण नियम, 1960 की वैधता का भी उल्लंघन है।
दूसरी ओर द्विवेदी का तर्क है कि अंतिम गहन पुनरीक्षण 2003 में हुआ था और अब नियमों के साथ प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 326 और धारा 21(3) के तहत यह आवश्यक है। कोर्ट ने कहा कि हमारा विचार है कि इस मामले की सुनवाई 28 जुलाई 2025 को उपयुक्त न्यायालय में होनी चाहिए। इस बीच, चुनाव आयोग द्वारा आज से एक सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दायर किया जाएगा और यदि कोई प्रत्युत्तर होगा तो उसे 28 जुलाई 2025 से पहले दायर किया जाएगा।
कोर्ट ने बताया कि ईसी के वकील द्विवेदी ने कहा कि 11 दस्तावेजों की सूची संपूर्ण नहीं है, जैसा कि जून के आदेश में संकेत दिया गया है, इसलिए हमारा विचार है कि चुनाव आयोग निम्नलिखित दस्तावेजों पर भी विचार करेगा, जैसे कि आधार कार्ड, चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी) और राशन कार्ड। याचिकाकर्ता इस स्तर पर अंतरिम रोक के लिए दबाव नहीं डाल रहे हैं, क्योंकि किसी भी स्थिति में मतदाता सूची का मसौदा 1 अगस्त 2025 को ही प्रकाशित किया जाना है और मामला उससे पहले 28 जुलाई 2025 को अदालत के समक्ष सूचीबद्ध है।