उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित आंतरिक समिति के तीन सदस्यों ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा के आवास का दौरा किया और यहां उनके आवास से नकदी बरामदगी के आरोपों की जांच शुरू की।
समिति में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश शील नागू, हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जी एस संधावालिया और कर्नाटक उच्च न्यायालय की न्यायाधीश अनु शिवरामन शामिल हैं।
सूत्रों ने बताया कि समिति के तीनों सदस्य न्यायमूर्ति वर्मा के 30, तुगलक क्रीसेंट स्थित आधिकारिक आवास पहुंचे। उन्होंने कहा कि तीनों न्यायाधीश करीब 30-35 मिनट तक न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास के अंदर रहे और निरीक्षण किया।
सूत्रों ने बताया कि समिति ने दोपहर में रवाना होने से पहले घटनास्थल का निरीक्षण किया। यह पता नहीं चल पाया है कि जांच समिति के पहुंचने पर न्यायमूर्ति वर्मा अपने आवास पर थे या नहीं।
इस महत्वपूर्ण जांच के निष्कर्ष न्यायमूर्ति वर्मा के भाग्य का फैसला करेंगे, जिन पर आरोप है कि 14 मार्च की रात करीब 11.35 बजे आग लगने की घटना के बाद उनके लुटियंस स्थित आवास में ‘‘नोटों से भरी चार से पांच अधजली बोरियां’’ पाई गईं।
उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की थी। भारत के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना के निर्देश के बाद दिल्ली उच्च न्यायालय ने उन्हें सौंपे गए सभी न्यायिक कार्य वापस ले लिये हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने 22 मार्च को न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की आंतरिक जांच करने के लिए तीन-सदस्यीय समिति गठित की और इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय की जांच रिपोर्ट वेबसाइट पर अपलोड करने का फैसला किया। इसमें कथित तौर पर भारी मात्रा में नकदी मिलने की तस्वीरें और वीडियो शामिल थे।
न्यायमूर्ति वर्मा ने नकदी के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उनके या उनके परिवार के किसी भी सदस्य द्वारा स्टोररूम में कभी भी नकदी नहीं रखी गई।
वर्ष 2014 में, मध्य प्रदेश की एक अधीनस्थ अदालत की न्यायाधीश द्वारा उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाए जाने से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए, उच्चतम न्यायालय ने संवैधानिक न्यायालयों के न्यायाधीश के विरुद्ध आरोपों की जांच के लिए आंतरिक प्रक्रिया निर्धारित की थी।
न्यायालय ने कहा था कि आंतरिक जांच प्रक्रिया के प्रथम चरण में, शिकायत में निहित आरोपों की प्रथम दृष्टया सत्यता का पता लगाया जाता है।