याचिकाकर्ता ने मसूरी वन प्रभाग के प्रभावित क्षेत्रों के लिए बहाली और पुनर्वास योजना के कार्यान्वयन तथा वर्तमान में राजस्व अधिकारियों के प्रभार या नियंत्रण में मौजूद सभी वन भूमि को निर्धारित अधिकतम समय सीमा के भीतर वन विभाग को हस्तांतरित करने के निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया है।
मामला 2023 में तब सामने आया जब तत्कालीन मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने मसूरी वन प्रभाग में सभी वन सीमा स्तंभों के सर्वेंक्षण के आदेश दिए। उस समय वन प्रभाग के लिए एक नयी कार्ययोजना तैयार करने की प्रक्रिया चल रही थी। मसूरी के तत्कालीन प्रभागीय वन अधिकारी द्वारा दी गयी रिपोर्ट में यह गंभीर तथ्य सामने आया कि कुल 12,321 सीमा स्तंभों में से धरातल पर 7,375 स्तंभ गायब हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, यह भी पाया गया कि इन लापता सीमा स्तंभों में से करीब 80 प्रतिशत स्तंभ केवल दो रेंजों, मसूरी रेंज और रायपुर रेंज में गायब हुए। रियल एस्टेट के नजरिए से इन दोनों रेंजों को बेहद लाभदायक माना जाता है जहां होटल, रिजॉर्ट और आवासीय परिसरों के विकास की अपार संभावनाएं हैं।
चतुर्वेदी ने इस वर्ष जून और अगस्त में प्रदेश के वन विभाग के प्रमुख (हॉफ) को पत्र लिखकर मामले को जांच के लिए सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को सौंपे जाने का अनुरोध किया। इन पत्रों में उन्होंने संबंधित क्षेत्रीय वन अधिकारियों के नाम पर बड़ी मात्रा में अचल संपत्ति के जमा होने का उल्लेख करते हुए उन अधिकारियों की संपत्तियों की जांच कराए जाने की भी मांग की थी।
इस वर्ष अगस्त में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के क्षेत्रीय कार्यालय ने भी उत्तराखंड सरकार को पत्र लिखकर मामले की जांच करने और आवश्यक कार्रवाई करने का आग्रह किया था। उस पत्र में वन संरक्षण अधिनियम-1980 के प्रावधानों के उल्लंघन से जुड़े मामलों में उचित कदम उठाने को कहा गया था।
इसी बीच, उत्तराखंड के हॉफ ने मामले के दोबारा परीक्षण के लिए शिवालिक के वन संरक्षक राजीव धीमान के नेतृत्व में एक नई समिति का गठन कर दिया।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि इस समिति का गठन “आंकड़ों को कम करके दिखाने” के इरादे से किया गया है और यह जमीनी स्तर पर उपलब्ध साक्ष्यों को नष्ट या उनमें छेड़छाड़ भी कर सकती है।
याचिका के अनुसार, समिति में शामिल कुछ अधिकारी पहले मियावाकी वृक्षारोपण से संबंधित वित्तीय अनियमितताओं के मामलों में संदेह के घेरे में थे जबकि कुछ अन्य पहले मसूरी वन प्रभाग में भी तैनात रह चुके हैं।












