या अली’ और ‘जाने क्या चाहे मन बावरा…’ जैसे प्रसिद्ध बॉलीवुड गीतों को अपनी आवाज देने वाले और युवा दिलों की धड़कन जुबिन गर्ग की शुक्रवार को सिंगापुर में ‘स्कूबा डाइविंग’ के दौरान मौत हो गई। ‘स्कूबा डाइविंग’ के दौरान गर्ग को चोटें आईं और उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई। जुबिन 52 वर्ष के थे और उनके परिवार में उनकी पत्नी हैं। वह पूर्वोत्तर महोत्सव में शामिल होने सिंगापुर गए थे। ‘स्कूबा डाइविंग’ पानी के अंदर एक प्रकार की गतिविधि है, जिसमें लोग विशेष उपकरणों की मदद से सांस लेते हुए समुद्र या किसी गहरे जल स्रोत में गोता लगाते हैं और तैरते हैं।
जुबिन ने लगभग तीन दशकों तक अपने गीतों और फिल्मों से युवाओं और बुजुर्गों को मंत्रमुग्ध किया। दुनिया भर में प्रशंसक उनकी आवाज के दीवाने थे। यही कारण है कि आज उनके निधन पर दुनिया भर में प्रशंसक शोक मना रहे हैं।जुबिन के असामयिक निधन से मनोरंजन जगत से लेकर राजनतिक जगत में भी शोक की लहर दौड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को असम के लोकप्रिय गायक जुबिन गर्ग की मृत्यु पर शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘लोकप्रिय गायक जुबिन गर्ग के आकस्मिक निधन से स्तब्ध हूं। उन्हें संगीत में उनके समृद्ध योगदान के लिए याद किया जायेगा।’’ उन्होंने कहा, ‘‘उनकी प्रस्तुतियां सभी वर्गों के लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय थीं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति मेरी संवेदनाएं। ओम शांति।’
अठारह नवंबर, 1972 को एक नौकरशाह पिता और गृहिणी-गायिका मां के घर जन्मे जुबिन गर्ग राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय स्पष्ट रूप से व्यक्त करने के लिए भी जाने जाते थे। दृढ़ विश्वास वाले जुबिन ने प्रतिबंधित संगठन उल्फा द्वारा बिहू समारोहों के दौरान हिंदी गीत गाने पर लगाए गए प्रतिबंध को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उन्हें कलाकारों को आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। जुबिन संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन में भी अग्रणी भूमिका में थे। सीएए के खिलाफ आंदोलन के चलते उन पर हमला भी हुआ था, लेकिन वह अपनी विचारधारा से पीछे नहीं हटे।