नई दिल्ली: जमाअत-ए-इस्लामी हिंद लोकसभा चुनावों के बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों में सांप्रदायिक हिंसा, लिंचिंग और विध्वंस की घटनाओं में चिंताजनक वृद्धि पर खेद प्रकट किया है । अपनी मासिक प्रेस कांफ्रेंस में जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को सत्ता में आये लगभग एक महीना हो गया है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह अपने सभी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मूल जिम्मेदारी से अनजान है। एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ सिविल राइट्स (एपीसीआर) की रिपोर्ट दर्शाती है कि लोकसभा चुनावों के बाद मुस्लिम समुदाय को अन्यायपूर्ण और शर्मनाक तरीके से निशाना बनाया गया है रिपोर्ट का विवरण अंतिम पेज पर है।प्रेस कांफ्रेंस में कहा गया कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद मुसलमानों को सांप्रदायिक आधार पर निशाना बनाने की इस कोशिश को तुरंत बंद करने की मांग करती है। सरकार को हिंसा के इन जघन्य कृत्यों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाना चाहिए और प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। हम भारतीय न्याय (द्वितीय) संहिता, 2023 के उस खंड के सख्ती से निष्पक्ष कार्यान्वयन की मांग करते हैं, जिसमें भीड़ द्वारा हत्या के लिए आजीवन कारावास से लेकर मृत्युदंड तक की कठोर सजा का प्रावधान है ताकि इस तरह के बर्बर कृत्यों पर रोक लगाई जा सके। हम उपरोक्त मुद्दे पर भारत के गृह मंत्री से एक व्यापक बयान की मांग करते हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लक्षित भीड़ हत्या की घटनाएं, अवैध विध्वंस और मुस्लिम समुदाय के खिलाफ घृणा अपराधों को तुरंत रोका जाए। हम यह भी आशा करते हैं कि लोकसभा में पर्याप्त संख्या के साथ, ‘इंडिया’ गठबंधन के सांसद और विपक्ष के लोग संसद में उपरोक्त चिंताओं को दृढ़ता से संबोधित करेंगे।
प्रेस कांफ्रेंस में कहा गया कि जमाअत-ए-इस्लामी हिंद जमाअत-ए-इस्लामी हिंद ने भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली में होने वाले बदलावों पर चिंता व्यक्त करती है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) को जुलाई 2024 से नव पारित भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कानूनों द्वारा प्रतिस्थापित किया गया है।जुलाई 2024 से 1 जुलाई से पहले और बाद में दर्ज मामले अलग-अलग कानूनों के अंतर्गत आएंगे। दो समानांतर आपराधिक न्याय प्रणालियां अस्तित्व में आएंगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया और जटिल हो जाएगी तथा पहले से ही कार्यभार से दबी न्यायपालिका पर अधिभार होगा । इससे भ्रम की स्थिति पैदा होगी और न्याय मिलने में देरी होगी। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि आईपीसी, सीआरपीसी और साक्ष्य अधिनियम में साधारण संशोधन, पूरे कानून को फिर से लिखने की तुलना में अधिक उपयुक्त होता।इन नए कानूनों में कई समस्याएं हैं। सबसे पहले, इन्हें संसद में उचित चर्चा के बिना दिसंबर 2023 में पारित कर दिया गया, जबकि कई विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर दिया गया था। उदाहरण के लिए, भले ही सरकार पुराने राजद्रोह कानून को खत्म करने का दावा करती है, लेकिन एक नई, अधिक कठोर धारा (बीएनएस की धारा 152) पेश की गई है। पुराने राजद्रोह कानून की तरह, यह नई धारा भी सुरक्षा चिंताओं की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति को प्रभावित करेगी। साथ ही इसमें झूठे मामले दर्ज करने के लिए पुलिस अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने का कोई प्रावधान नहीं है। नये कानून के तहत पुलिस को 3 से 7 वर्ष के कारावास की सजा वाले अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करने का अधिकार दिया गया है। इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा और वंचित वर्गों के लिए एफआईआर दर्ज कराना कठिन हो जाएगा। पुलिस अब 60 से 90 दिनों की अवधि के दौरान किसी भी समय 15 दिनों तक की हिरासत का अनुरोध कर सकती है। इससे लम्बे समय तक हिरासत में रहना पड़ सकता है और सत्ता का दुरुपयोग हो सकता है, जिससे नागरिक स्वतंत्रता कमजोर हो सकती है। हालांकि 2027 तक न्याय प्रणाली (एफआईआर, निर्णय आदि) को डिजिटल बनाने के प्रयास सराहनीय हैं, लेकिन यह उन गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के लिए भेदभावपूर्ण होगा, जिनके पास टेक्नोलॉजी और इंटरनेट तक पहुंच नहीं है। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद हमारी कानूनी प्रणाली को उपनिवेशवाद से मुक्त करने के वास्तविक प्रयासों का समर्थन करती है, लेकिन पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों को नागरिकों के प्रति जवाबदेह बनाए बिना वास्तविक उपनिवेशवाद से मुक्ति नहीं हो सकती।