नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया कि औपनिवेशिक काल के राजद्रोह के दंडात्मक प्रावधान की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) के समक्ष रखा जाए ताकि कम से कम पांच न्यायाधीशों की एक संविधान पीठ को अधिसूचित किया जा सके, जिसके पास पर्याप्त ताकत हो।
सुनवाई के दौरान सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने विचार किया कि प्रस्तावित पांच न्यायाधीशों की पीठ इस पर विचार कर सकती है कि क्या केदार नाथ मामले में आईपीसी की धारा 124 ए (देशद्रोह) की संवैधानिकता को बरकरार रखने वाले पहले के फैसले पर सात सदस्यीय न्यायाधीशों बड़ी पीठ द्वारा पुनर्विचार की आवश्यकता है।
1962 में संविधान पीठ ने केदार नाथ सिंह मामले में धारा 124ए की वैधता को बरकरार रखते हुए कहा था कि राज्य को उन ताकतों से सुरक्षा की जरूरत है, जो इसकी सुरक्षा और स्थिरता को खतरे में डालना चाहते हैं। दंड प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सीजेआई की अगुवाई वाली पीठ से अनुरोध किया कि मामले को पांच न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष भेजे बिना याचिकाओं के समूह को सीधे सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजा जाए। अदालत संसद के कानून का इंतजार नहीं कर सकती।